Saturday, June 6, 2015

नेपालमे बज्जिका पत्रकारिता :- अवस्था आ चुनौती

सञ्जय साह ‘मित्र’
विषय प्रवेश
नेपालके प्रमुख भाषामे एक बज्जिका अपनेआपमे प्राचीन भाषा रहल हए । लिच्छविलोगके अप्पन भाषाके रुपमे ऐतिहासिक रुपमे देखलगेल बज्जिकाके जर वैशालीसे सुरु होइअ आ लिच्छविलोगके साथे राजधानी काठमान्डु भी पहुँचल विश्वास हए । नेपालके बज्जिकाभाषी भौगोलिक क्षेत्रके भारतीय बज्जिकाभाषी क्षेत्रसे सिमान जुटल होएलासे बज्जिकाभाषी विशाल क्षेत्रके एगो अंगके रुपमे नेपालीय बज्जिका रहल हए । नेपालमे बीस लाखसे सत्ताइस लाखके बीचमे बज्जिकाभाषी रहल अनुमान कएलगेल हए । तथ्यांकके दृष्टिसे नेपालमे बोलेजाएबाला एक सय तेइस भाषाभाषीमध्ये सातमा लमहर मातृभाषा आ दुसरका भाषाके रुपमे छठा लमहर भाषाके रुपमे देखलगेल बज्जिकाके परोसी भाषा सबके तुलनामे साहित्यरचना आ पत्रकारिताके क्षेत्रमे बहुत कम काम भेल हए । दोसरा भाषाके तुलनामे भाषिक चेतना बहुत ढिला अएलाके साथे अन्य विविध कारणसे बज्जिका पत्रकारिता तुलनात्मकरुपसे बहुत पछाडि रहल हए ।  वर्तमान परिवेशमे पत्रकारिताके तीनगो क्षेत्र छापा पत्रकारिता, रेडियो पत्रकारिता आ अनलाइन पत्रकारितामध्ये इहाँपर नेपालीय बज्जिकाके छापा पत्रकारिता विषयपर सामान्य चर्चा कएलगेल हए ।
मुख्य विषयवस्तु
नेपालीय बज्जिकाके सुरुआत हस्तलिखित पत्रिकासे भेल हए सम्वत् २०४२ मे । सर्लाहीके बलरा गाविस ई ऐतिहासिक पवित्र कार्यके सुरुआत कएले   हए । सम्भवतः विश्व बज्जिकाके प्रथम पत्रकारिताके पग सम्पादक किशोर उर्फ चन्द्रकिशोर झाद्वारा ही बढावलगेल रहे बलरामे गठित ग्राम उत्थान परिषद्के माध्यमसे । ग्राम उत्थान परिषद् एगो सामाजिक संस्था रहे जे तत्कालीन पंचायती व्यवस्थामे सामाजिक सचेतनाके क्षेत्रमे काम करे । क्याम्पस पढेÞबाला युवकलोगके सक्रियता आ सहभागिता रहल ओ जुगमे विविध विषय आ विविध भाषाके समिटके परिषद् ग्राम नाओके हस्तलिखित पत्रिका निकाले । आठ पानाके अर्धवार्षिक ई पत्रिका विजया अंक दशैंके समयमे आ वसन्त अंक सरस्वती पूजाके समयमे निकले त्रिवेणी भाषामे । त्रिवेणी कहेके मतलब स्थानीय बज्जिका, हिन्दी आ नेपाली भाषामे । ओ समयके याद करइत वरिष्ठ पत्रकार चन्द्रकिशोरजी कहइछथिन् “ गंगासागर सिंह, लालबाबु सिंह आ अपने स्वयं पहिलेसे ही पत्रिकाके तयारी करेमे लागजाई, जब पत्रिका तयार होजाए तब स्टिच कऽके आसपासके चार–पाँच गाँओके प्रतिष्ठित व्यक्तिके हाथमे पहुँचाई ।”
पत्रिकापर बहुत लोगके आकर्षण रहे । ओ समयमे  गोरखापत्रमात्रे प्रकाशित होखे, उहो समयपर लोगके हाथमे नमिले । अप्पन विषयवस्तु आ अप्पन भाषा होएलासे जनमानसमे पत्रिकाप्रतिके आकर्षण अपनेआपमे विशेष रहे । महिला सबके रचना भी समावेश होए ग्राममे । २०४२ से २०४५ तक पाँच अंक प्रकाशित ग्रामसे आरम्भित इतिहासके सोनाके अक्षरसे लिखाएके चाहिँ ।
ग्रामके बहुभाषिकतामे बज्जिकाके पहिल रंगके बादमे करिब एक दशक बज्जिका पत्रकारिता पुरे अन्हारमे रहल । एहीबीचमे बज्जिकाके पहचान आ अपनत्वके अनुभूतिके विस्तार भी भेल । २०५५ सालमे शीतल गिरीके अगुवाइमे रमेश समर्थन आ सुशील कुमार झाके सम्पादनमे रौतहटरश्मि साहित्यिक त्रैमासिकके प्रकाशन भेल । ई पत्रिका भी बहुभाषिक रहे । मूलरुपसे नेपाली भाषाके प्राथमिकता देबेबाला रौतहटरश्मि बज्जिकारश्मिके काम भी कएलक । बज्जिका भाषाके बज्जिका भाषामे आ बज्जिका भाषापर लेख प्रकाशनके साथे बज्जिकाके विभिन्न विधाके रचना प्रकाशन करेके काम ई पत्रिका खूब कएलक । एक हिसाबसे बज्जिकाके रचनाकारके जन्मावेके काम भी खूब कएलक रौतहटरश्मि । एतने न खोजखोजके रचना छापेके, गोष्ठी कराके नयाँ प्रतिभाके उत्पादन आ प्रोत्साहन करेके साथे रचनाके समीक्षा भी कऽके रचनाकारके आत्मबलके विकास कराबेके काममे ई पत्रिकाके बहुत लमहर योगदान हए । बज्जिका भाषाउपर बज्जिकामे लिखल लेखके प्रमुख स्थान देबेके साथे रचनाकारके प्रोत्साहन करेके काम भी कएले इतिहास हए रौतहटरश्मिके । पहिल पुरस्कारसे ई रचनाकार २०५७ सालमे सम्मानित भेल फिलिमके पर्दापरजइसन आजो ऊ दिन हमरा आँखके अगाडि हए । रौतहटरश्मिके प्रमुख सम्पादकके नोकरी सरुवा होएलाके बाद ई पत्रिका सुस्त होगेल । विशेष अंकसब भी निकालते आएल रौतहटरश्मिके २०६१  तक १२गो अंक प्रकाशित भेल रहे । बज्जिका भाषाप्रति जनचेतना बढाबेमे ई पत्रिकाके बहुत अत्यन्त महत्त्वपूर्ण योगदान रहल हए ।
रौतहटरश्मिके प्रकाशन बन्द होएलापर शंकर गुदर उच्च माध्यमिक विद्यालय समनपुरके प्राचार्य शिवचन्द्र शाहके संरक्षकत्व आ रमेशमोहन अधिकारीके सम्पादनमे प्रकाशनारम्भ भेल समनपुष्प त्रैमासिकके । समनपुष्प भी साहित्यिक त्रैमासिक पत्रिकाके रुपमे आएल । प्रकाशनके पहिल अंकसे ही एई पत्रिकामे बज्जिकाके रचना पर्याप्त जगह हापे । सम्पादक रमेशमोहन अधिकारीके बज्जिकापरके विशेष अनुराग आ पत्रिकाके संरक्षक शिवचन्द्र प्रसाद शाहके बज्जिका भाषाके प्रतिके त्याग आ समर्पणके बहुत सुन्दर फलके रुपमे पत्रिका ऐतिहासिक उपलब्धिके ओर बढइत रहे । मगर सम्पादक अधिकारीके नोकरीके जिलान्तर सरुआ होएलाके पत्रिकाके उत्साह सोझे मुर्झागेल । पत्रिकाके बन्द करेके बात केनहुसे त नआएल मगर प्रकाशन स्थगित भेलसे भेलही रहगेल आजतक । २०६१ से २०६४ तक समनपुष्पके ११ साहित्यिक पुष्पोपहार पाठकके हाथके सुगन्धित कएलक । विशुद्ध साहित्यिक पत्रिका होएलासे कुछे दिनमे ई पत्रिकाके अप्पन पाठक बनल आ एकर प्रतीक्षा एई ढङसे होएलागलकि पाठकके छटपटी होए पत्रिकाके दूचार दिन लेट होखे प्रकाशनमे त । एई पत्रिकाके प्रकाशनमे सोनापर सोहागा बनाबेके लेल गरुडाके बेपारी एवं समाजसेवी धर्मनाथ प्रसाद जयसवालद्वारा एगार हजार एक सय एगार रोपइआके अक्षयकोषके स्थापना कऽके तुलसी साहित्य पुरस्कारके स्थापना भी भेल । एक बरिसमे सबसे निमन कविताके रचनाकारके एक हजार एक रोपइआके पुरस्कारके साथे सम्मानपत्रके भी घोषणा कएलगेल रहे । मगर पत्रिकाके प्रकाशन बन्द होएलासे अइसन अवसरके प्राप्ति पाठकगणके नहोएसकनाइ एगो दुखद पक्ष रहल बज्जिका पत्रकारिताके क्षेत्रमे ।
२०६४मे पहिल अंक प्रकाशन भेल बज्जिकार्पणके । सञ्जय साह मित्र प्रधान सम्पादक र बज्जिकार्पणमे शेख चाँद अलि आ मौजेलाल साह सम्पादकके  रुपमे रहलन् । पत्रिकाके प्रकाशनके काम नेपाल बज्जिका परिषद कएले रहे । वास्तवमे नेपाल बज्जिका परिषद अब इतिहास होगेल हए जेकर अध्यक्ष रहे शेख चाँद अलि । पत्रिकाके प्रकाशन पूर्णरुपसे बज्जिका भाषामे भेल । बज्जिका पत्रकारिताके दृष्टिसे देखलापर बज्जिका भाषामे मात्र प्रकाशित होएबाला पहिल पत्रिकाके रुपमे देखलजाइअ । भाषा आ साहित्यमे समर्पित एई पत्रिकाके स्वरुप पुस्तिका साइजमे हए । पत्रिकाके व्यवस्थापनमे परिवर्तन होइत धीरेधीरे बज्जिकार्पण ११ अंक प्रकाशन भेल हए २०७१के वर्तमान समयतक । बज्जिकार्पणके प्रकाशनके समयसे अभीतक एक साल एकोगो अंक प्रकाशन नभेल हए न त हर साल कमसे कम एगो अंक प्रकाशन होइत धुकरचुवा हिसाबसे चलरहल हए । पत्रिकामे सम्पूर्ण लगानी आ व्यवस्थापन अकेले सञ्जय साह मित्रके द्वारा होरहल हए । ओइसे त जिला प्रशासन कार्यालय रौतहटमे भी बज्जिकार्पण दर्ता भेल हए । अभीतक भाषा आ साहित्यके सेवामे समर्पित एकमात्र पत्रिका रहल बज्जिकार्पण साहित्यिक त्रैमासिकमे एक सालमे प्रकाशित सम्पूर्ण कवितामे उत्कृष्ट एक जनेके तुलसी साहित्य पुरस्कारसे सम्मानित कएलजाइअ । धर्मनाथ जयसवालद्वारा समनपुष्प पत्रिकाके लेल स्थापित पुरस्कारके ही समनपुष्पके स्थगनके बाद बज्जिकार्पणमे लेआवलगेल रहे । पहिले एक हजार एक रोपइआके रहल तुलसी साहित्य पुरस्कारके रकम २०७१ सालसे बढाबेके घोषणा भेल हए । २०७१सालसे प्रकाशित बज्जिकार्पणमे उत्कृष्ट कविताके रचनाकारके पाँच हजार एक सय रोपइआके पुरस्कार देबेके घोषणा कएलगेल हए । भाषा आ साहित्यमे समर्पित बज्जिकार्पण साहित्यिक पत्रकारिताके इतिहासमे एगो महत्त्वपूर्ण उपलब्धि रहल हए ।
सामान्य पत्रकारिताके दृष्टिसे रौतहटमे बज्जिका पत्रकारिताके औपचारिक सुरुआत २०६५से भेल हए शीतलपुर साप्ताहिकसे । शीतलपुर गाविस रौतहटके शिक्षक जयप्रकाश यादवद्वारा जिला प्रशासन कार्यालय रौतहटमे अपने सम्पादकत्व आ ग्रामीण शिक्षा विकास नेपाल नाओके संस्थाके प्रकाशकत्वमे दर्ता कराके प्रकाशन सुरु कएलगेल शीतलपुर साप्ताहिक एगो सुदुर गाँओके नाओपर स्थापित पत्रिका हए । समाचारमूलक शीतलपुर साप्ताहिक अखबारके इतिहासमे पहिल कदम रहल ई साप्ताहिक । नियमित अनियमित रुपसे प्रकाशनरत शीतलपुर साप्ताहिक धुकरचुवा हिसाबसे अभी भी प्रकाशन होरहल   हए । पत्रिकाके प्रकाशनमे कुछ समस्या होरहल सम्पादक यादवके कहनाम हए । मगर पत्रिका प्रकाशनके लेल अभी भी उत्साहमे कौनो कमी नआएल कहके सम्पादक यादवके कहनाम भी अपनेआपमे एगो प्रेरणा देबेबाला बात हए ।
बज्जिका पत्रकारितके क्षेत्रमे एगो आउर युवाके प्रवेश बहुत सुखद रहल । दिनेश यादव संगमके नाओके युवक बज्जिकाके औपचारिक पत्रकारिताके लेल समर्पित युवक हए । २०६६ सालमे बज्जिकावाणी दर्ता भेल जिला प्रशासन कार्यालय रौतहटमे । बज्जिकावाणीके सम्पादक छथिन् विजय कुमार कर्ण आ प्रकाशक दिनेश यादव संगम । दर्ता होइतेमे आसिनसे प्रकाशन होरहल बज्जिकावाणीके प्रकाशनमे भी कुछ समस्या रहल हए मगर पछिलका दू सालसे नियमित प्रकाशन होरहनाइ एगो लमहर उपलब्धिके बात हई । अनेक किसिमके समस्याके दरकिनार करइत बज्जिकावाणी अपना लक्ष्यके ओर अगाडि बढ़ते जारहल हए । दोसराके इन्टरनेटसे सोझे कपी कऽके अपना पत्रिकामे रखदेबेके जइसन पेस्टकारिताके जुगमे सम्पूर्ण समाचार आ लेख रचना अपने टाइप कऽके पत्रिकामे प्रकाशन करनाइ अपनेआपमे एकओर चुनौती हई त दोसरओर एगो गर्वके बात भी । केनहुके बिना कौनो सहयोग आ साथसे अपने दमपर पत्रिका निकाल रहल बज्जिकावाणीके प्रकाशक दिनेश यादव संगमके जोशके मानेके परी ।
बज्जिका पत्रकारिताके नयाँ कदमके रुपमे महिलाके जुटनाइ भी हए । अल्पना कुमारी नाओके महिलाके नाओपर जिला प्रशासन कार्यालय रौतहटमे दर्ता भेल हए एगो मासिक पत्रिका । २०७० मे दर्ता भेल हमनीके आवाज मासिक नाओके पत्रिकाके सम्पूर्ण कार्य करेवाला महिलाके रुपमे देखलगेल अल्पना कुमारी । हमनीके आवाज मासिकके जम्माजम्मी दुगो अंक प्रकाशन भेल आ ओकराबाद पत्रिकाके प्रकाशन स्थगन भेल । पत्रिकाके प्रकाशन स्थगनसे भी लमहर उपलब्धि बज्जिका पत्रकारितामे महिलाके प्रत्यक्ष उपस्थिति हए । एहु भाषाके पत्रकारिताके क्षेत्रमे महिलाके औपचारिक प्रवेश भेल हए आ ई कदमके आरम्भ करेमे भी बज्जिकावाणीमे समर्पित युवक दिनेश यादव संगमके बहुत लमहर योगदान हए ।
जिलामे दर्ता भेल बहुते पत्रिका भी बज्जिकाके स्थान देइअ । नेपाली आ बज्जिका दुनु भाषामे प्रकाशनके अनुमति प्राप्त पत्रिका सबके संख्या करिब आधा दर्जनसे बेसी होएलापर भी बज्जिकाके नियमित स्थान देबेवाला पत्रिकामे गरुडासे रेणु गुप्ताके प्रकाशन÷सम्पादनमे निकलेवाला मध्यरौतहट साप्ताहिक ही रहल हए । ई पत्रिकामे साहित्यके स्तम्भ भी रहल हए आ साथे बज्जिकामे पर्याप्त लेखरचनाके साथे समाचार भी नियमित रुपसे प्रकाशन होरहल हए । बज्जिका पत्रकारिताके इतिहासमे इहो पत्रिकाके योगदानके भी उलेख होनाइ महत्त्वपूर्ण बात हए । मोकाचानस बज्जिकाके स्थान देबेवाला पत्रिकामे क्रान्तिद्वार दैनिक, राजदेवी दैनिक, मधेस मिहिर साप्ताहिक, तराई एक्सप्रेस साप्ताहिक लगायतके रहल हए ।
बज्जिका पत्रकारिताके चुनौती
मोफसलसे प्रकाशित होएबाला सामान्यतया सभी पत्रिकाके जे समस्या हए ओकरा बावजुद बज्जिका पत्रकारिताके थप चुनौती भी रहल हए । बज्जिका भाषाके पत्रिकाके पाठक नमिलनाइ, विज्ञापनके उपलब्धता नहोनाइ जइसन समस्या त हइतहिए हए उपरसे थप समस्या हए लेखरचना आ समाचारके । नेपाली भाषाके पत्रकारितामे पेस्टकारिता करेके अवसर बज्जिका पत्रकारितामे नहोएलासे सभी समाचार आ लेख अपनासे टाइप करेके होएलापर लोगके ओतना मन नकरले । नेपाली आ हिन्दी भाषा टाइप करेबाला आ निमनसे पत्रकारितामे दख्खल राखेबाला लोग भी बज्जिकामे दू लाइन लिखेके कतराइअ आ ई बात कहइअ कि हमरा बज्जिकामे लिखही नआबले । केतना पत्रकारबन्धु त इहो कहइअ कि बज्जिका भाषाके पत्रिकाके पढेमे भी समस्या होइअ । बोलेमे आसान लेकिन लिखेमे समस्या होएलासे गैरपत्रकार लोगसे पत्रिकाके खोराक नमिलनाइ भी एगो गम्भीर चुनौती रहल पत्रकारलोगके कहनाम हए । ई सबसे अइसन बात प्रष्ट होइता कि बज्जिकापर समर्पित पत्रकारिताके अभी भी कमी खटकइअ । अपना मातृभाषाके अधिकारके चर्चा करेबाला आ मातृभाषाके विभिन्न संस्थाके सफलतापूर्वक सञ्चालन करेवाला विद्वानलोगके कलम भी नचलेके अवस्था रहलासे बज्जिका पत्रकारिताके अवस्था दयनीय रहल भी संचारकर्मीलोगके कहनाम हए । अइसही पत्रिकाके माध्यमसे कौनो पारिश्रमिक लेखकलोगके उपलब्ध कराबेके अवस्था नरहलासे भी लेखनकार्य पूरे अनुत्पादक बनल आ लिखेके ओर लोगके आकर्षण नहोरहल देखलगेल सञ्चारकर्मीलोगके कहनाम हए ।
सयके लाठी आ एकके बोझा कहनाम जइसन अलगेअलगे रहके बेसी पत्रिका निकालेसे अच्छा हए कि सभी पक्ष एक होके एगो अइसन पत्रिकाके सुरुआत कएलजाए जेमे सभीके ओतने योगदान होखे । जेसे सभीके नाओ ओतने फैलके समग्रमे बज्जिकाके विकास भेल सन्देश जाए पाठकमे आ इतिहासमे बहुत काम भेल जानकारी अपनेआपमे होसके पत्रिकाके इतिहास । 

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