Saturday, June 6, 2015

लोककथा

इमानदार चोर

आशुतोष साह

            एगो गाँओमे दुगो चोर रहे । एगोटेके नाओ रहे मोसाफिर आ दोसराके नाओ रहे रमुआ । दुनुजने सङ्हतिया रहे । दुनु साथीके गुजर गुजरान चोरिएसे चलइत रहे । दुनुके घर एकेगो गाँओमे त रहे मगर गाँओके दुनु कातमे । दुनुके दिनभर ओतना भेंट नहोखे लेकिन रातमे जरुर भेंट होजाए । दुनु साथी मिलके केकरो घरमे जाके चोरी करे आ आधाआधा बाँटके लेजाए ।
 रमुआ बहुत इमानदार रहे लेकिन मोसाफिर रहे बैमान । रमुआ अपना गाँओमे चोरी करे नचाहे लेकिन मोसाफिर अपना परोसियोके घरमे सेन फोरदेबे । रमुआके असुल रहेकि गाँओके चोरीमे ऊ नजाए आ कुछो लेबो नकरे । रमुआके इमन्दारीसे मोसाफिर कभीकाल असमञ्जसमे परजाए ।
मोसाफिरके बैमानी भी कभीकाल रमुआके परसानीमे डालदेबे । लेकिन तइओ रमुआ अपना इमानके सिमान कहियो भी नबटे । जेतना चोरी करे ओमे इमन्दारीपूर्वक आधा मोसाफिरके देबे मगर मोसाफिरके जहिया बेसी हाथ लागे त ऊ पएँडेपर फेंकइत आबे आ बाँकी सामानमे आधाआधा बाँटके लेलेबे । जब बिहान होखे त अकेले जाके रतुका फेंकलका सामान उठाके लेआबे आ अकेले धलेबे । अइसन बैमानीसे रमुआके बेसी घाटा लागजाए । केतनो बैमानी करे तइओ मोसिफिरके पुरी नपरे । रमुआके इमानदारीसे ओकर बर्कत होइरहे ।
एक दिन एगो गाँओमे चोरी करेगेल दुनुजने । जेकरा घरमे चोरी करे पइँसल, ऊ बहुत धनिक रहे । रातमे चोरी कएलापर दुनुजनेके बहुत धन हाथलागल । बहुते सोना–चानी बहुते हाथ लागल दुनुजनेके । चोराके अएलक सरेहमे । रमुआ त इमन्दार रहे मगर मोसाफिर अपना बैमानी करेसे ओहु दिन नचुकल । कुछ त बैमानी करबे कएलक मगर दुनुजनेके चोराएल धनसम्पत्ति एकलमन जमा भेल त मोसाफिर कहे जे हम बेसी चोरइली ह त रमुआ कहे हम बेसी चोरइली ह । के बेसी चोरएलक एई विषयक झगडा नरहे, झगडा रहे कि हम बेसी चोरइली ह कहके मोसाफिर बेसी गहना लेबे  चाहे । रमुआ भी बहुते धन देखले रहे, ओसे मनेमने कहेकि अब आधा मिलजाइ त चोरी छोरदेहम । केतनो समझएलापर मोसाफिर आधा देबेला मानबे नकरे । हारदारके रमुआ कहइता – आधा हमरा नदेबे त हम जाके बिहान कहदेबऊ घरबालाके कि तू चोरएले छे ।
मोसाफिर त आउरो धूर्त रहे । ऊ कहइता – ठीक हऊ, तू कहेके मनहोतऊ त कहदिहे बिहान । आजु हम तोहरा कमे देबऊ । तू कहदेबे त हम पकड़ाजाएम लेकिन जब हम पकडाएम त तोहरो पकडादेबऊ । जब दुनुजने चोरी कइली त दुनुजने जेल काटम ।
मोसाफिरके बात सुनके रमुआ भी सोचलक कि चल आजु जे देइता ओहीमे गुन्जाइस करेके परी । मोसाफिर अपनेसे बखरा लगएलक, अपने बाँटलक । जे देलक सेही लेलक रमुआ आ घरे चलअएलक । रमुआके निन नपरल । सबेरे उठलक । मोसाफिर जे देलेरहे रातमे से अङोछाके खुँटमे बन्हलक आ चलदेल ओही गाँओमे । जब ओ महाजनके दुरापर पुगइता तब बहुते लोग जमा रहे । सभीके मुहपर रातुके चोरीके ही बात रहे । ओहीलमन पुगके रमुआ अङोछाके गेठरी खोलके कहइता – रतुका चोर हमही छी । दूजने मिलके चोरी कइली । हमरा जे मिललसे इहे हए, हमरे गाँओके मोसाफिर हमरा लेआएल रहे । हमरा हिसामे जेतना परल हए ओतना हम इमन्दारीसे लेआके महाजनके लौटादेली । हमरा जे सजाय देबेके हएसे देबस ।
सभी लोग कहलक कि ई इमन्दार चोर हई । एकरा माफ करदेलजाओ । मोसाफिरके पकडेला पुलिस गेल । पकडाके ऊ जेलमे चलगेल । लोगके कहलापर रमुआके चोराएल धनमेसे महाजन कुछ रमुआके देदेलक । रमुआके चलते महाजनके बहुते धन फिर्ता होगेल । महाजन खुस रहे । रमुआ कुछ दिनके बाद साधु होगेल ।

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